जयगुरुदेव सत्संग – 26 April 1971

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धर्म की तरफ ना मुड़ने पर परेशानियां और आएगी

Date: 26 July 1976 | Place: पेनांग (मलेशिया) | Source: शाकाहारी पत्रिका 1971 | जयगुरुदेव सत्संग

पेनांग (मलेशिया) में संत तुलसीदास जी  कहा संदेश मलय में तुलसीदास जी का संदेश 

26 अप्रैल 1971 निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कुछ दिनों के लिए भारत से आए हुए संत तुलसीदास जी ने  पिनांग वासियों को बताया कि आज के समय में कोई भी सुखी नहीं है, किसी न किसी प्रकार का दुख हर एक
को लगा हुआ है,  लोग भाग रहे हैं कहां जाना है,  क्यों जाना है कुछ नहीं पता ।

अपार जन समूह में बोलते हुए संत जीने कहा कि दुनिया के लोग अब धर्म की तरफ नहीं मुडते हैं तो परेशानियां और बढ़ेगी । चाहे जमीन से आए, चाहे आसमां से आए, चाहे पूर्व से आए या पश्चिम से आए परंतु अब आएंगे जरूर। इसको कोई रोक नहीं सकता । 

गत वर्ष इंदौर भारत में कहीं कही गई भविष्यवाणियों को बताते हुए संत जी ने कहा कि यदि लोग अपना आचार विचार, खान-पान ठीक नहीं करते हैं तो एक समय ऐसा आ रहा है कि आदमी को आदमी उठाने वाला नहीं मिलेगा, लोग देख रहे हैं कि पूर्वी पाकिस्तान(अब बांग्लादेश है) में शवों पड़ी है और वह उनको उठाने वाला कोई नहीं है, अन्य देशों में भी ऐसी स्थिति आने वाली है ।

प्रसाद का चमत्कार

Place: लखनऊ | Source: शाकाहारी पत्रिका 1971 | जयगुरुदेव सत्संग

लालसाहेब शोहरतगढ़ राज की धर्मपत्नी श्रीमती भेसराज्य लक्ष्मी जी नेपाल के राणा परिवार की है । महारानी जी पिछले कई वर्षों से आषाढ्य रोग से पीड़ित थी ।  ज्ञात हुआ है कि उनका इलाज नेपाल, भारत तथा रोम (इटली) में किया गया किंतु स्वास्थ्य लाभ न हो सका । 

अभी कुछ सप्ताह पूर्व राज्य लक्ष्मी जी लखनऊ में इलाज के लिए लाई गई है । दवा में कोई फायदा होता ना हुआ देखकर लाल साहब  अत्यधिक परेशान थे । इंसान जब सब तरफ से थक जाता है तो महात्माओं की दुआ की भीख मांगता है । 

संयोग वर्ष जय गुरुदेव नाम का प्रचार करने वाले तुलसीदास जी महाराज का प्रसाद महारानी जी को रामनवमी की रात्रि में दिया गया जबकि उनकी मानसिक अवस्था आसाधारण थी । प्रसाद खाने के तुरंत ही बाद उन्हें शांति मिली और वह सो गई । प्रातः काल रानी जी की दशा में सुधार पाया गया  । 

श्री सीताराम सिंह जी, जिन्होंने प्रसाद दिया था, राजा साहब को राय दी कि अब दवा और इंजेक्शन सब बंद कर दिया जाए । लाल साहब ने वैसा ही किया । आज कई दिन बीत चुके हैं, रानी राज्यलक्ष्मी जी अब पूर्ण रूप से स्वस्थ है । इसमें एकाएक इस परिवर्तन से राज्य घराने में लोग आश्चर्यचकित है । 


गुरु की महिमा का कोई सीमा नहीं होता है, विश्वास करना चाहिए ।

दया का फल : राजा किसान के बेटे को बलि देने क्यों जा रहा था

Place: लखनऊ | Source: शाकाहारी पत्रिका 1971 | जयगुरुदेव सत्संग

प्राचीन समय में एक राजा राज्य करता था । उसके एक ही पुत्र था जिसे राजा अपने प्राणों से भी अधिक प्यार करता था । जब राज कुमार 12 वर्ष का हुआ तब बीमार पड़ा । राजा ने अपने राज्य के सभी अच्छे से अच्छे वेद, हकीम व चिकित्सकों को बुलाया किंतु राजकुमार का रोग असाध्याय होता जा रहा था ।

राजा अत्यंत चिंतित हो उठा उसने पंडितों और ज्योतिषियों को बुलाया और उनसे उसने राजकुमार के ग्रहों की दशा देखने को कहा । विद्वान ज्योतिष्यों ने राजकुमार की जन्मपत्री देखकर कहा कि राजकुमार तभी ठीक हो सकता है जबकि इसकी अवस्था के किसी बालक की, जो कि अपने माता-पिता का एकमात्र पुत्र हो तथा सुंदर हो, उसे बलि दी जाए ।

राजा ने मंत्री को बुलाकर आदेश दिया कि वह ऐसे बालक की खोज करें । बालक की खोज में मंत्री एक गांव में जा पहुंचा । वहां कुछ बच्चे खेल रहे थे । उसमें एक बच्चा बहुत ही सुंदर था और उसकी अवस्था भी लगभग 12 वर्ष की थी ।

मंत्री उसे बच्चों के पास गया और उसने बड़े प्यार से उसके माता-पिता का पता पूछा । बालक मंत्री को लेकर अपनी झोपड़ी की तरफ चल पड़ा । दरवाजे पर उसका पिता बैठा था, वह एक गरीब किसान था जो मेहनत मजदूरी से अपनी स्त्री तथा अपने एकमात्र पुत्र की परवरिश करता था ।

मंत्री ने किसान को राजा की आज्ञा सुनाया और उससे उसका बच्चे को मांगा । बच्चे के बदले में उसे मुंह मांगा धन देने का वादा भी किया । पहले तो पति-पत्नी बच्चे को देने से हिचके लेकिन राजा की आज्ञा टालने का साहस भी ना कर सके ।

उन्होंने विनम्र स्वर में कहा मंत्री जी, हम अपने एकमात्र बच्चे का क्या सौदा कर सकते हैं लेकिन राजा की आज्ञा के आगे हम नतमस्तक हैं । यह कहते ही बच्चे के मां-बाप दोनों गले दोनों के गले भर गए और आंखें गीली हो गई । बालक चुपचाप सब सुनता रहा ।

मंत्री ने किसान को पांच स्वर्ण मुद्राएं दी और बालक को लेकर महल की ओर चला चल पड़ा । बालक को देखकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ उसे सबसे बड़ी प्रसन्नता इस बात की थी कि अब राजकुमार स्वस्थ हो जाएगा । बली की विधिवत तैयारी की गई ।

बालक को नहला धुला कर अच्छे वस्त्र पहने गए, चंदन का टीका लगाया गया और ब्राह्मणों के मंत्र उच्चारण के बीच बच्चे को लाया गया । बली होने के कुछ ही क्षण बाकी थे । पंडित मंत्र पढ़ रहे थे, राजा सामने बैठा था, मंत्री तथा सभी दरबारी खड़े थे ।

बालक ने आंखें उठकर आसमान की तरफ देखा और उसके चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कान फैल गई । राजा ने उसकी मुस्कान को देखा और उसमें छिपी दर्द ने उसके हृदय को दहला दिया । वह अपने स्थान में उठकर बच्चे के पास आया और बड़े ही प्यार भरे शब्दों में बोला, बेटा तुम बताओ कि तुम मुस्कुरा क्यों रहे हो जबकि तुम जानते हो कि तुम्हारी आज बलि दी जाएगी ।

बालक ने जवाब दिया, राजन ! इस संसार में पहला शहर माता-पिता का होता है किंतु मेरे माता-पिता ने स्वर्ण मुद्राएं लेकर आपके पास भेज दिया दूसरा सहारा राजा का होता है किंतु यहां जो कुछ हो रहा है वह आपकी आज्ञा से हो रहा है तीसरा शहर धर्म का और ईश्वर का होता है किंतु मेरी बाली धार्मिक नियमों के अनुसार देवता के समक्ष दी जा रही है । अतः राजन मुझे विधि के विधान पर हंसी आ गई कि मुझे इतना असहाय और बेसहारा बना दिया कि मैं कहीं कुछ नहीं कर सकता ।

बालक की बात राजा के दिल को छू गई । राजा ने राजा ने बालक को गोद में उठा लिया और बोला नहीं बेटे, तेरे लिए दरवाजे खुले हैं और अब तेरी बली नहीं दी जाएगी । मैं अपनी आज्ञा वापस लेता हूं। तूने मुझे धर्म का पाठ पढ़ाया है, और तुम्हें अपने माता-पिता के पास भेज दिया जाएगा । राजा ने बहुत से बहुमूल्य उपहार को देखकर बालक को उसके माता-पिता के पास भेज दिया, ने ।

अब राजकुमार स्वस्थ होने लगा, उसे स्वस्थ होता देखकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने अपने राज्य में किसी जीव की बली को बंद कर आजीवन दीन दुखियों पर दया करता रहा । आगे चलकर राजकुमार ने भी अपने अपने पिता का अनुकरण किया ।

इस कहानी से पता चलता है की दया का बहुत बड़ा महत्व है आप अगर जीवन पर दया करेंगे तो ऊपर वाला भी आपके पर दया और उपकार करेंगे । इसीलिए कहा जाता है की सत्संग में बहुत बड़ी ताकत होती है अक्सर लोग गलत रास्ते पर चलने से बच जाते हैं ।

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