गुरुदेव तुम्हारे चरणों में Gurudev tumhaare charanon mein lyrics

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नाम में वह शक्ति, पावर है जो समस्त संसार को चला रहा है।
Gurudev tumhaare charanon mein in Hindi

Jaigurudev Bhajan | गुरुदेव तुम्हारे चरणों में

गुरुदेव तुम्हारे चरणों में सतकोटि प्रणाम हमारा है,
मेरी नईया पार लगा देना कितनों को पार उतारा है ।१।

मैं बालक अबुध तुम्हारा हूँ तुम समरथ पिता हमारे हो,
मुझे अपनी गोद बिठा लेना दाता लो भुजा पसारा है ।२।

यद्दपि संसारी ज्वालायें हम पर प्रहार कर जाती हैं,
पर शीतल करती रहती हैं तेरी शीतल अमृत धारा हैं।३।

जब आंधी हमें हिला देती ठंडी जब हमें कपा देती,
मुस्कान तुमहारे अधरों की दे जाती बड़ा सहारा है ।४।

कुछ भुजा उठाकर कहते हो कुछ महा मंत्र सा पड़ते हो,
गद गद हो जाता हूँ स्वामी मिल जाता बड़ा सहारा है ।५।

इस मूर्ति माधुरी की झांकी यदि सदा मिला करती स्वामी,
शौभाग्य समझते हम अपना कौतुहल नाथ तुम्हारा है ।६।

मैं बारम्बार प्रणाम करूँ चरणों में शीश झुकाता हूँ,
अब पार अवश्य हो जाऊंगा गुरु ने पतवार सम्हाला है ।७।

यहां पढ़ें : गुरु महाराज के अद्भुत सत्संग जो आपके जीवन को बदल देगा

जयगुरुदेव सत्संग (Jaigurudev Satsang) : कर्म किसी को नहीं बख्शतें

Jaigurudev Bhajan

यह बाबा सावन सिंह जी के समय की बात है। एक बार आश्रम में लंगर बंट रहा था तभी वहां पर एक गरीब आदमी आया और वह आदमी बैल गाड़ी चलाकर कर अपनी रोजी-रोटी कमाकर खाता था।

वह आश्रम के बाहर अपनी बैलगाड़ी को खड़ा करके हाथ मुंह धोकर आश्रम में जाकर बाबा जी को मत्था टेक कर बाहर आकर (हलवा प्रसाद) की लाईन में लग जाता है।
हलवा प्रसाद पर सेवादार भाई सेवा सिंह जी की सेवा थी। वह गरीब आदमी बार-बार चिंतित था कि उसके बैल कहीं बैलगाड़ी को लेकर न चले जाएं, इसलिए उसको बड़ी हड़बड़ाहट हो रही थी।

यह चीज सेवादार सेवा सिंह देख रहे थे। वह व्यक्ति लाइन छोड़कर प्रसाद लेने आगे आ गया, यह देखकर सेवादार सेवा सिंह को उस पर गुस्सा आ गया और उसे डांटते हुए बोला कि ” पीछे हट रीछ (भालू) दी तरह ऊपर चढे आ रहा है” यह बोलकर उसे पीछे हटा दिया और प्रसाद भी नहीं दिया।

अब वह गरीब आदमी साईड में खड़ा होकर अपनी बारी का इंतजार करता रहा अैार सेवादार दूसरे संगत को प्रसाद देते रहे, मगर उस गरीब को नहीं दिया। तभी उस गरीब ने देखा की थोड़ा सा प्रसाद नीचे गिरा हुआ है, उसने प्रसाद उठाया और अपने मत्थे पर लगाकर गुरु प्रसाद खा लिया।

जब वह बाहर निकला तो उसके मन में यह विचार घूमता रहा कि सेवादार ने उसे रीछ क्यूँ कहा जबकि सेवादार खुद रीछ की तरह व्यवहार कर रहा था, यह मन में सोचते हुए अपने काम पर चला गया।

कुछ दिन बाद उस सेवादार (सेवा सिंह जी) की मृत्यु हो गई। उसकी जगह उसके बेटे को सेवादार बना दिया गया समय बीता गया। एक दिन एक मदारी एक रीछ (भालू) को लिए आश्रम के बाहर आया और उसे बाहर खड़ा कर खुद हाथ मुंह धोकर आश्रम के अंदर चला गया।

मत्था टेककर जब वह प्रसाद लेकर बाहर आया तो उसने थोड़ा प्रसाद भालू को भी दिया, भालू दो पैरों पर खड़ा होकर प्रसाद खाया और आश्रम की और मुंह करके दोनों हाथ जोड़कर नीचे की और झुक गया। उसके आंखों में आसूं छलकने लगे कुछ संगत वहां खड़ी उसकी और देख रहीं थीं।

अब तो यह रोज का नियम हो गया उस मदारी का रोज आना और वहीं प्रतिक्रया दोहरानी जिसे सारी संगत देखती एक दिन सेवादारों ने बाबा जी से पूछा की बाबाजी यह मदारी रीछ (भालू) को लेकर रोज आता है, रोज यह आपका प्रसाद खाता है और मत्था भी टेकता है। मगर जब यह मत्था टेकता हैं तो इस की आंखों में पानी क्यों भर आता है, यह सब क्या है ?

तब बाबा सावन सिंह जी ने उन्हें विस्तार से बताया की यह अपने पिछले कर्मों का भोग भुगतान कर रहा है और जानते हो यह कौन हैं ? तभी सेवादारो ने कहा बताइये गुरु जी कौन हैं तब गुरु जी नें बताया की यह हमारा वहीं सेवादार (सेवा सिंह) है। सेवादारो में सेवा सिंह जी का बेटा भी बैठा था, उसने बाबाजी के आगे हाथ जोड़कर विनती की कि मेरे पिताजी ने तो आपकी जीवन भर सेवा की है बाबाजी फिर भी उनकी यह दुर्दशा।

तब बाबाजी ने उसे समझाया कि अपने किये कर्मो की सजा हर किसी को भुगतनी पड़ती है यह सुन सेवा सिंह का बेटा गुरु जी के चरणों में गिर कर रोने लगा और कहने लगा की गुरुजी आप तो सबको बख्श सकतें हैं, आपसे मेरी हाथ जोड़कर विनती है की मेरे पिता जी को बख्श दो उन्हें इस योनि से मुक्त कर दो। 

बाबा जी को उस पर दया आ गई और उन्होंने थोड़ा सा प्रसाद अपने हाथ से दिया और कहा कि जा यह प्रसाद उस रीछ को अपने हाथों से खिलाकर आ। वह प्रसाद लेकर गया और उस रीछ को खिला दिया इस तरह (सेवादार सेवा सिंह जी) को भालू की योनि से मुक्ति मिली।

भावार्थ : भगवान ना जानें किसको किस रुप में मिल जाए, कभी भी किसी गरीब का अपमान न करें और अगर आप किसी भी रुप में कोई भी सेवा संगत की कर रहे हैं तो कभी भी किसी से झल्लाकर न बोले अन्यथा आपकी की गई सेवा व्यर्थ हो जाती है।

बाबा जयगुरुदेव का संक्षिप्त परिचय | Baba Jaigurudev, Ujjain

बाबा जयगुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध संत स्वामी तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ था। बाबा जयगुरुदेव सात साल की उम्र में सत्य की खोज में निकल पड़े। 

कई वर्षों तक मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि में सच्चे गुरु, भगवांन की खोज करते हुए अलीगढ़ के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा (दादा गुरु) से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरु मान लिया।

सभी शाकाहारी जीवन अपनाएं यही बाबा जय गुरुदेव की अपील है। गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए, जीवों की हत्या बंद हो और लोग शाकाहारी बने, इन सब सन्देश को देश के कोने कोने तक पहुँचाया गया।

बाबा जय गुरुदेव का 116 वर्ष की उम्र में शुक्रवार, 18 मई 2012 की रात मथुरा में निधन हो गया। उनके जाने के बाद, बाबा उमाकांत जी महाराज(Umakant Ji Maharaj) आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बने और जयगुरुदेव मिशन को आगे ले जा रहे हैं।

Jaigurudev Bhajan | Gurudev tumhaare charanon mein lyrics

Gurudev tumhaare charanon mein satakoti pranaam hamaara hai,
meri naiya paar laga dena kitanon ko paar utaara hai .1.

Main baalak abudh tumhaara hoon tum samarath pita hamaare ho,
mujhe apani god bitha lena daata lo bhuja pasaara hai .2.

Yaddapi sansaari jvaalaayen ham par prahaar kar jaati hain,
par sheetal karati rahati hain teri sheetal amrt dhaara hain.3.

Jab aandhi hamen hila deti thandi jab hamen kapa deti,
muskaan tumahaare adharon ki de jaati bada sahaara hai .4.

Kuchh bhuja uthaakar kahate ho kuchh maha mantr sa padate ho,
gad gad ho jaata hoon swami mil jaata bada sahaara hai .5.

Is moorti maadhuri ki jhaanki yadi sada mila karati swami,
shaubhaagy samajhate ham apana kautuhal naath tumhaara hai .6.

Main baarambaar pranaam karoon charanon mein sheesh jhukaata hoon,
ab paar avashy ho jaoonga guru ne patavaar samhaala hai .7.

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